Shraman Varsh 01 Ank – 11 September 1950

यह पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी की शोध पत्रिकाओं का पहला संस्करण है।

श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस का मुखपत्र

संपादक – इंद्रचंद्र शास्त्री
दल सुख मालवणिया
पृथ्वीराज जैन
मोहन लाल मेहता
प्रकाशक –
कृष्णचंद्राचार्य
अधिष्ठाता, श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ (विद्याश्रम)
हिन्दू युनिवर्सिटी, बनारस, यूपी, 221005.

This is a first edition of Research Journals of Parshwanath Vidyapeeth , Varanasi.

Mouthpiece of Shri Parshwanath Vidyashram, Banaras

Editor – Indrachandra Shastri
Dal Sukh Malvaniya
Prithviraj Jain
Mohan Lal Mehta
Publisher –
Krishnachandracharya
Dean, Shri Parshvanath Vidyapeeth (Vidyaashram)
Hindu University, Banaras, UP, 221005.

इस अंक में 

  1. नया युग (कविता) – श्री ज्ञानचंद्र भारिल्ल
  2. अपनी बात (संपादकीय)
  3. कल्पना – कुमारी सत्यवती जैन
  4. विकास का मुख्य संसाधन – पं. सुखलाल जी संघवी
  5. युवक से (कविता) – रामकुमार जैन
  6. जैन और हिन्दू- प्रो. दलसुख मालवणिया
  7. उपकार का बदला (कहानी)- श्री मोहनलाल मेहता
  8. पैंतालीस व बत्तीस सूत्रों की मान्यता पर विचार – श्री अगर चंद नहाटा
  9. तुम सदा तरुण हो- जनरल मेकार्थर
  10. पर्युषण पर्व – प्रो विमल दास जैन एम. ए. , एल. एल. वी.

In this issue –

  1. New Era (Poem) – Shri Gyanchandra Bharil
  2. Your point (Editorial)
  3. Kalpana – Kumari Satyavati Jain
  4. Main resource of development – Pt. Sukhlal Ji Sanghvi
  5. From the Youth (Poem) – Ramkumar Jain
  6. Jain and Hindu- Prof. Dalsukh Malvania
  7. Revenge of favor (story)- Shri Mohanlal Mehta
  8. Thoughts on the recognition of forty-five and thirty-two sutras – Shri Agar Chand Nahata
  9. You are forever young – General Macarthur
  10. Paryushan Parva – Prof. Vimal Das Jain, M. A. , L.L. B.